दहलीज हूँ... दरवाजा हूँ... दीवार नहीं हूँ।
खरीद लाये थे कुछ सवालों का जवाब ढूढ़ने।
मैंने माना कि नुकसान देह है ये सिगरेट...
जो सूख जाये दरिया तो फिर प्यास भी न रहे,
अगर मोहब्बत से पेश आते तो न जाने क्या होता।
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है।
कौन फिरता है ज़मीं पे चाँद सा चेहरा लिए।
ज़ालिम दुनिया समंदर है किनारा मुमकिन नहीं।
ख्यालों और सांसों का हिसाब है ज़िन्दगी,
वो किताबें भी जवाब माँगती हैं जिन्हें हम,
कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्वाब आते हैं,
जर्रे-जर्रे में वो shayari in hindi है और कतरे-कतरे में तुम।
कुछ बदल जाते हैं, कुछ मजबूर हो जाते हैं,
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता,